समुद्र में 6000 मीटर गहराई तक जाएंगे भारतीय वैज्ञानिक
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में इस वक्त सबसे ज्यादा चर्चा गगनयान मिशन की है। इस मिशन के तहत पहली बार भारत की जमीन से अंतरिक्ष
यात्रियों को तीन दिन की अंतरिक्ष यात्रा में भेजा जाएगा। लेकिन एक और मिशन पर
हमारे वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक गगनयान के साथ-साथ
समुद्रयान पर भी काम चल रहा है, जोकि भारत का पहला गहरा
समुद्री मिशन होगा और वैज्ञानिक भी समुद्र में गोता लगाएंगे।
इस मिशन में जिस पनडुब्बी का इस्तेमाल
होगा, उसका नाम मत्स्य-6000 रखा गया है। इस मॉड्यूल में क्रू
रहेगा, साथ ही जीवन सहायक प्रणाली और अन्य जरूरी चीजें भी
होंगी। मॉड्यूल को टाइटेनियम से बनाया जा रहा है, जिसकी
मोटाई 80 मि. मी. होगी। रिपोर्ट के
अनुसार, क्योंकि मॉड्यूल टाइटेनियम का है, इसलिए उसकी वेल्डिंग के लिए जो
काबिलियत चाहिए, वह सिर्फ इसरो के पास है।
इसरो की विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर
फैसिलटी (VSSC) को यह लक्ष्य
पूरा करने की जिम्मेदारी दी गई थी। कहा जाता है कि काम पूरा करने के लिए VSSC
को अपनी मशीनरी में कुछ सुधार करने पड़े। मॉड्यूल को इस तरह से
डिजाइन किया गया है कि वह समुद्र तल से 6 हजार मीटर गहराई तक
दबाव को झेल सके।
रूस से भी मदद
भारत के पास ऐसी सुविधाओं की कमी है, जिसमें
मॉड्यूल को परीक्षण किया जा सके। रिपोर्ट के अनुसार उसे रूस के सेंट पीटर्सबर्ग
में टेस्ट किया जाएगा। मॉड्यूल का काम अगले कुछ महीनों में पूरा हो सकता है,
जिसे नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओसियन टेक्नॉलजी को सौंपा जाएगा। यह
इंस्टिट्यूट पूरे मिशन को लीड कर रहा है। भारत कामयाब होता है तो वह अमेरिका,
रूस, फ्रांस, जापान और
चीन जैसे देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा, जो
वैज्ञानिकों को गहरे समुद्री मिशनों में भेज चुके हैं।
2026
तक पूरा होने की तैयारी
केंद्र ने पांच वर्षों के लिए 4,077 करोड़ रुपये के कुल बजट पर गहरे महासागर मिशन को मंजूरी दी थी। तीन वर्षों
(2021-2024) के लिए पहले चरण की अनुमानित लागत 2,823.4
करोड़ रुपये है। भारत की एक अद्वितीय समुद्री स्थिति है। यह 7,517 किमी लंबी तटरेखा, जो नौ तटीय राज्यों और 1,382 द्वीपों
का घर है।